मंगळवार, २६ सप्टेंबर, २०१७

मरण उपरान्त....

मरण उपरान्त....

ले रहा था जब सांस, था मै जिंदा,
आता नही था कोई मिलने के लिये!
अब थम चुंकी है सांस मेरी तो
हर कोई आ रहा देखने के लिये!       

कोई साथ नही था, जब था रोता   
हसने भी कोई शामिल नही था!
अब सो रहा हू, गहरी निंदमे
आ रहे लोग कितने, रोनेके लिये!

देखो आज कितना ठाठ है मेरा
पाणी गर्म रखा, नहलानेके लिये!
जीते जी ना मिला ढंग का कपडा
शुभ्र वस्र लाया पहनानेके लिये!

रातदिन रहता था मै भूका
आता नही था कोई खिलानेके लिये!
अब साथही मेरे, भूक मिट चुंकी
चावल रखा यहां पकवानेके लिये!

दबाया जीन्होने अपने पैर तले
आये है वो श्रद्धांजली देने के लिये!
ना दे सके थे एक शब्दसे आधार
चार चार लोग आये, उठानेके लिये!

ले रहा था जब सांस, था मै जिंदा
आता नही था कोई मिलने के लिये!
अब थम चुंकी है सांस मेरी तो
हर कोई आ रहा देखने के लिये!

हर कोई आ रहा देखने के लिये! 
     
.......प्रल्हाद दुधाल.        



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